रसना राम कहत तें थाको ।।।। पानी कहे कहुँ प्यास बुझत है प्यास बुझै जदि चाखो...

दिन दिन प्रीति अधिक मोंहि हरि की ।।।। काम क्रोध जंजाल भसम भयो बिरह अगिनि लगि...

हौं तो खेलौं पिया सँग होरी ।।।। दरस परस पतिबरता पिय की छबि निरखत भइ बौरी...

बिरहनी मंदिर दियरा बारि। बिन बाती बिन तेल जुगत स्यों बिन दीपक उजियार। प्राण पिया मेरे...